कोर्स में प्रवेश न मिल पाने की वहज भी कोर्स का नाम ही है, जिसमें बदलाव करने के निर्देश यूजीसी ने जारी किए थे, लेकिन एचपीयू ने इन निर्देशों को गंभीरता से नहीं लिया, जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ रहा है.
यूजीसी ने साल 2015 में देशभर के विश्वविद्यालयों को निर्देश जारी किए थे कि इस कोर्स का नाम बदला जाए, लेकिन एचपीयू ने चार साल बीत जाने के बाद भी यूजीसी के निर्देशों का पालन नहीं किया है. यही वजह है कि ये कोर्स इक्डोल की सूची से बाहर है.
बता दें कि अगर विवि कोर्स का नाम नहीं बदलती तो एमएमसी का बैच इक्डोल में नहीं बैठ पाएगा. वहीं, अगर एचपीयू बीना नाम बदले बैच शुरू कर देता है तो डिग्री की मान्यता नहीं मिलेगी.
एचपीयू में रेगुलर और डिस्टेंस मोड से चल रहे इस कोर्स का नाम बदल कर मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन करने के निर्देश यूजीसी ने दिए थे जबकि एचपीयू अभी मास्टर्स इन मास कम्युनिकेशन के नाम से इस कोर्स को चला रहा है.
हैरानी की बात तो ये है कि यूजीसी के आदेश लगातार 2015 से आ रहे हैं, लेकिन एचपीयू अब साल 2019 में इन आदेशों का पालन करने की तैयारी कर रहा है.
नाम बदलने की इस प्रक्रिया को एचपीयू को जुलाई महीने से पहले पूरा करना होगा, अगर समय रहते विवि ये प्रक्रिया पूरी नहीं करता तो एचपीयू रेगुलर मोड से भी एमएमसी का बैच शुरू नहीं कर पाएगा.